भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में शासकीय सेवा से बर्खास्त होने की भले ही उतनी चिंता हो, किन्तु जीवित बने रहने की तमन्ना थी। लगभग 40 वर्षों की शासकीय सेवा के वर्तमान में 3 वर्ष का भ्रष्टाचार रोकने के प्रयास का यह प्रथम अंक के रूप में प्रकाशन ( लेखन ) है। प्रयास रहेगा पूरा - पूरा अनुभव पूर्ण अवधि का प्रकाशित किया जाए। तथ्यों की प्रामाणिकता के लिए सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत 100 से ज्यादा आवेदन देकर बड़ी तादाद में प्रमाणित प्रतियाँ ली गईं हैं। सर्वोच्च न्यायालय से लेकर छोटे-छोटे फोरमों तक का सहयोग लिया गया। सी.बी.आई., सी.व्ही.सी., लोकायुक्त, अन्वेषण ब्यूरो आदि का सहारा काम आया। उत्पीड़न मुझे ही नहीं, पूरे परिवार को मिला। प्रताड़ना ऐसी कि भय से अपने भी बेगाने बन गए। 18 पड़ोसियों, जिन्हे एकमात्र मेरे आवास में फोन होने पर वर्षों मेरे परिवार ने 24 घंटे सेवा-सहयोग दिया था, वे मेरे द्वारा सर्वोच्च अधिकरियों के भ्रष्टाचार को उजागर करने पर बोलना तो क्या, सामने पड़ने से बचने का भय खाने लगे। जब मेरी जान पर आ पड़ी, तो मुझे रिवॉल्वर का लाइसेंस भी पड़ा एवं रिवॉल्वर साथ में रखना पड़ा। भोपाल से दिल्ली रवाना होने पर यह धारणा बनी थी कि भारत सरकार के सचिव का पद तक पहुँचा जायेगा, किन्तु बने पद को बचाना भी संभव ना हो सका। भारत के राष्ट्रपति का इंजीनियरी का सर्वोच्च पुरस्कार रहते हुए भी मेरे से कम योग्यता के समकक्ष लोग सचिव का पद धारण कर सेवानिवृत्त होते रहे, मैं देखता रहा। मैं सूचना टेक्नोलॉजी की भ्रूण हत्या होते देख अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हो सकता था। संघर्ष किया, पद से हटाया गया तो अगली जगह भी इसी परियोजना के मूल्यांकन का अनुसन्धान परियोजना लेकर उसमे वर्षों अनुसंधान करता रहा।
यह मेरा भोग यथार्थ है, मैं अनुभव लेता रहा, इनके अनाचार, अत्याचार, धूर्तता, नीचता को देखता रहा। मेरे अभ्यावेदनों ( पत्रों ) के साथ ही 50 से ज्यादा सांसदों द्वारा राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी, एन. विट्ठल केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, श्री नीतीश कुमार कृषि मंत्री को दिए गए अभ्यावेदन नक्कारखाने की तूती बनकर रह गए। मूल रूप से श्री नीतीश कुमार कृषि मंत्री के पास सभी अभ्यावेदन पहुँचकर कचरे की टोकरी में समा गए। मैं चरवाहे से बढ़कर सहायक महानिदेशक बना था तो मेरे पास खोने को तो कुछ रहा नहीं, बस पाया ही पाया। इसलिए माँ के मृत शरीर के सामने खड़े होकर शपथ ली थी कि ' टूट जाऊँगा, पर पीछे नहीं हटूँगा। ' न्यायालयों में इन 40 वर्षों में 40 प्रकरण दायर करने के बाद मुझे मिला,क्या भोगा, उसपर भी लिखने की मेरी तमन्ना है।
प्रस्तुत खण्ड में जितना संभव था, वह दिया जा रहा है, आगामी अंक चलते रहे, यह आकांक्षा है। इस पुस्तक के टंकण एवं संपादन में अश्वनी तोमर,चंचल तोमर, कंचन किशोरजी सहयोग किया, साथ ही परिजनों अग्रज श्री ब्रह्मचारी सिंह, पत्नी श्रीमती सरला, पुत्री कु. अंकिता एवं पुत्र अनुराग का भी इसमें सहयोग रहा - को आभार। इस संघर्ष में साथ देनेवाले स्व. श्री रामरेखा सिंह निसंक एवं ठा. रणधीर सिंहजी का मैं सदा आभारी रहूँगा, जिन्होंने समय-समय पर सम्बल दिया। समय-समय पर पुस्तक लेखन के बारे में मार्गदर्शन करनेवाले विख्यात वकील श्री प्रशांत भूषण, श्री दीनानाथ बत्रा, श्री अतुल कोठरी एवं डॉ. जयदीप आर्य का भी मैं आभारी हूँ। मित्रगण जो समय-समय पर संबल एवं सहयोग देते रहे - सर्वश्री सिध्देश्वर प्रसाद, व्ही. टी. प्रभाकरण, जनार्दनन सुंदरेशन पिल्लई, डॉ. विनोद पांडेय, डॉ. हरिशंकर शर्मा के सहयोग के लिए साधुवाद। पाठकों के सविनय निवेदन है कि जो भी सुझाव हों, देकर मुझे कृतार्थ करें। इससे मुझे आगे के लेखन में सहयोग मिलेगा।
- सदाचारी सिंह तोमर
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