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भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नई दिल्ली में एक-एक हजार करोड़ रूपए की दो परियोजनाएँ विश्व बैंक द्वारा स्वीकृत होकर चालू हुई थीं। इन दोनों परियोजनाओं में एक बड़ी राशि देश के कृषि  क्षेत्र का कम्प्यूटरीकरण करके इसमें इंटरनेट की सुविधा चालू करनी करनी थी। मैं इस योजना के सहायक महानिदेशक के रूप में पदस्थ हुआ।  अतः चयन के बाद कम्प्यूटरीकरण का पूर्ण उत्तरदायित्व मुझे लिखित रूप में दिया गया था। इसके साथ ही इस परियोजना के लिए परियोजना क्रियान्वयन इकाई  बनाई थी, जिसमें मुझे भी शामिल किया गया।

पूरी परियोजना का प्रबंधन और विशेष रूप से कम्प्यूटरीकरण का प्रबोधन जब मैंने चालू किया तो इसमें बहुत बड़ी अव्यवस्था एवं अनियमितता सामने आई, जिसे ठीक करने के उद्देश्य से जब मैंने कार्यवाही चालू की तो पाया कि इन परियोजनायों में घपलों के लिए परिषद् के महानिदेशक , उप महानिदेशक, सहायक महानिदेशक आदि के साथ ही श्री नीतीश कुमार कृषिमंत्री का भी हाथ है। जाँचों की लीपापोती कर दी और भ्रष्ट लोग दंडित नहीं किए जा सके। वहीं दूसरी ओर श्री नीतीश कुमार मेरे द्वारा घपले उजागर करने से इतना कुपित हुए कि सात बार विभिन्न तरह से मेरी जाँच

कराई, फिर भी दोष ना पाने पर खीझकर मेरी वार्षिक प्रगति प्रतिवेदन खराब किया और उसी आधार पर नियम न होते हुए भी मुझे वहाँ से सेवा से ही हटा दिया। प्रकरण अभी भी सर्वोच्च न्यायालय में अटका पड़ा है। भ्रष्टाचार कैसे फलता - फूलता रहा, इसके बारे में भोगे हुए यथार्थ के रूप में इसका वर्णन किया है। इसके लगभग सभी पत्र ज़िंदा हैं तथा सभी का नाम देकर उनके द्वारा किए गए भ्रष्टाचार का ज़िक्र किया गया है।